Two masterpieces, first by Mukul Anand and then by Karan Malhotra. What a poem!
वृक्ष हों भले खड़े,
हो घने, हो बड़े,
एक पत्र छाँव की
मांग मत, मांग मत, मांग मत!
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ!
तू न थकेगा कभी,
तू न थमेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ!
ये महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु, श्वेद, रक्त से
लथपत, लथपत, लथपत!
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ!
-स्व. श्री हृवंश्रई "बच्चन" श्रीवास्तव
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